मनमोहक दृश्यावलियों के बीच उत्तराखंड के तीर्थ हमेशा से ही श्रद्धालुओं और घुमक्कड़ों को अपनी ओर खींचते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड में प्रकृति और धर्म का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है। कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचने में आस्था की असल परीक्षा तो होती ही है साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। चमोली जिले में स्थित अनसूइया देवी का मंदिर एक ऐसा ही स्थान है जहां पर भक्ति और प्राकृतिक सौम्यता एकाकार हो उठती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए चमोली के मंडल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुंच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर गढ़वाल और गोपेश्वर होते हुए मंडल पहुंचा जा सकता है। मंडल से माता के मंदिर तक पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में ही श्रद्धालुओं की असली परीक्षा होती है। लेकिन आस्थावान लोग सारी तकलीफों को दरकिनार करते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं।का
अविस्मरणीय यात्रा

पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुंचे और उन्होंने भोजन की इच्छा जाहिर की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने शर्त रखी कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्व होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड़ गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनकी शर्त के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद जी कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति
मंदिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चांदी का छत्र रखा है। मंदिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है। अब यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर महर्षि अत्रि की गुफा और जल प्रपात का विहंगम दृश्य श्रदलुओं और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि गुफा तक पहुंचने के लिए सांकल पकड़कर रॉक क्लाइबिंग भी करनी पड़ती है। गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है।
मनमोहक दृश्य

कैसे पहुंचे
यहां पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले देश के किसी भी कोने से ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश तक आप बस या ट्रेन से पहुंच सकते हैं। निकट ही जौलीग्रांट हवाई अड्डा भी है जहां पर आप हवाई मार्ग से पहुंच सकते है। ऋषिकेश से तकरीबन 217 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गोपेश्वर पहुंचा जाता है। गोपेश्वर में रहने-खाने के लिए सस्ते और साफ-सुथरे होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
गोपेश्वर से 13 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मंडल नामक स्थान आता है। बस या टैक्सी से आप आसानी से मंडल पहुंच सकते हैं और मंडल से तकरीबन 5-6 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आप अनसूइया देवी मंदिर मे पहुंच सकते हैं। पहाड़ का मौसम है इसलिए हरदम गर्म कपड़े साथ होने चाहिए। साथ ही हल्की-फुल्की दवाइयां भी अपने साथ होनी जरूरी है।
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