अगर आप प्रकृति की गोद में स्वच्छन्द विचरण करने और उसके सौंदर्य का वैभव देखने के शौकीन हैं तो हिमालय के पूर्वी छोर पर स्थित छोटा सा राज्य सिक्किम आपके लिए बेहद अनुकूल है। यह राज्य जितना छोटा है, उतना ही सुंदर है। दुनिया का तीसरा सबसे ऊंचा पर्वतशिखर कंचनजंगा यहीं है और यहां के स्थानीय लोग अपने रक्षक देवता के रूप में 8534 मीटर ऊंचे इस शिखर की पूजा करते हैं। ऊंचे पर्वतशिखरों, हरी-भरी घाटियों, तेजधार नदियों और खूबसूरत पहाड़ों से भरा यह राज्य प्राकृतिक सौंदर्य के दीवाने सैलानियों के लिए अपने-आपमें अनूठा है। यह शायद इकलौता ऐसा राज्य है जहां आप एक घंटे के भीतर ही गहरी घाटियों की तपती गरमी से पहाड़ की ढलानों पर पसरी बर्फीली सर्दी तक पहुंच सकते हैं।

सिक्किम की राजधानी है गंगटोक। वायुमार्ग से यहां पहुंचने के लिए आपको बागडोगरा जाना होगा। दिल्ली और कोलकाता से बागडोगरा के लिए सीधी उड़ानें हैं। बागडोगरा से गंगटोक के लिए हेलीकॉप्टर सेवाएं हैं। सड़कमार्ग पर बागडोगरा से गंगटोक की दूरी 124 किलोमीटर है और इस पर टैक्सियां भी चलती हैं। जबकि नजदीकी रेलवे स्टेशन न्यू जलपाईगुड़ी से गंगटोक की दूरी 125 किलोमीटर है। रेल से जाने वालों को सड़कमार्ग से ही यह दूरी तय करनी होती है। सड़कमार्ग से जाने वाले लोग सिलीगुड़ी, दार्जीलिंग या कलिम्पोंग होकर भी गंगटोक जा सकते हैं।

इतिहास के झरोखे
 सिक्किम 
मुख्य रूप से प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर सिक्किम में ऐतिहासिक धरोहरें और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल भी खूब हैं। पर्वतारोहण और वाटर राफ्टिंग जैसे रोमांच के शौकीन लोगों के लिए यहां तमाम सुविधाएं हैं। इसके महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों में एक है कबि लुंग्त्सोक, जो गंगटोक से उत्तरी सिक्किम राजमार्ग पर 17 किलोमीटर दूर है। यह लेप्चा समुदाय के मुखिया ते कुंग तेक और भोटिया समुदाय के मुखिया खे बुम सार के बीच हुई ऐतिहासिक संधि का साक्षी है। कई वर्ष पूर्व घने जंगलों के बीच जिस जगह पर यह संधि हुई थी, वहां आज भी एक सुंदर स्मारक स्तंभ है।
प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर सिक्किम
गंगटोक में ही मौजूद नाम्ग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ टिबेटोलॉजी धार्मिक व ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। यहां तिब्बती विज्ञान, चिकित्सा और ज्योतिष से संबंधित पुस्तकों व पांडुलिपियों के अलावा लेप्चा और संस्कृत की पांडुलिपियां भी खूब हैं। इससे जुड़े संग्रहालय में करीब 200 प्रतिमाएं और थंकाएं हैं। एकेडमिक उद्देश्य से यहां आने वाले लोगों के आकर्षण का यही मुख्य केंद्र है।

गंगटोक से 5 किलोमीटर दूर स्थित एंची बौद्धमठ धार्मिक दृष्टि से यहां का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। माना जाता है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को लामा द्रुप्तोब कार्पो का आशीष मिलता है। पिछले दो सौ वर्षो से लामा द्रुप्तोब यहां के लोकजीवन में आस्था के प्रतीक के रूप में व्याप्त हैं। गंगटोक से 95 किलोमीटर दूर स्थित चुंगथांग भी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यही वह जगह भी है जहां से तीस्ता नदी शुरू होती है। पूर्वी हिमालय के दो महत्वपूर्ण दर्रो लाचेन और लाचुंग का संगम भी यहीं होता है। कहते हैं कि यहां आने वालों को गुरु रिम्पोछे का आशीर्वाद मिलता है। लेप्चा लोगों की बहुलता वाली इस घाटी में स्थित पवित्र गुरु इहेदू में गुरु रिम्पोछे के पैरों और हाथों के चिन्ह सुरक्षित हैं। जैव विविधता के लिए भी यह जगह प्रसिद्ध है।

झलक कंचनजंगा की
 सिक्किम 
यहां आने वाले पर्यटकों में सबसे अधिक संख्या उन लोगों की है जो दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वतशिखरों में एक कंचनजंगा की झलक पाने को लालायित होते हैं। इसकी झलक यूं तो एन्ची मोनास्ट्री से ही मिल सकती है, पर गंगटोक से 8 किलोमीटर दूर स्थित ताशी व्यू प्वाइंट से इसे बेहतर ढंग से देखा जा सकता है। कंचनजंगा की झलक पाने के लिए सबसे अच्छी जगह है युमथांग। गंगटोक से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस स्थल की ऊंचाई समुद्रतल से 11,800 मीटर है और यह पहाड़ी वनस्पतियों के लिए खास तौर से जाना जाता है। मई-जून में तरह-तरह के फूलों से अटी पड़ी इस घाटी का रंग-बिरंगा सौंदर्य देखते ही बनता है। गंगटोक से यहां तक आने के लिए कई तरह के टूर पैकेज आयोजित किए जाते हैं, जो आम तौर पर दो रात व तीन दिन या सात रात और आठ दिनों के लिए होते हैं। यहां आने वाले लोग एक छोटे से गांव लाचुंग में ठहरते हैं। प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से यह गांव भी अनूठा है। लाचुंग के रास्ते पर ही एक जगह है सिंहिक, जो कंचनजंगा की अप्रतिम झलक पाने के लिए सर्वोत्तम समझा जाता है।
प्राकृतिक सौंदर्य के लिए मशहूर सिक्किम
दुर्लभ पौधों और प्राणियों की दुनिया में

अगर आप सिक्किम की जैव विविधता का नजारा लेना चाहते हैं तो इसके दो अभ्यारण्यों सिंग्बा रोडोडेंड्रन सैंक्चुरी और कंचनजंगा नेशनल पार्क की सैर करना कतई न भूलें। इनमें सिंग्बा रोडोडेंड्रन सैंक्चुरी खास तौर से वनस्पतियों की विविधता के लिए जानी जाती है। लाचुंग घाटी में स्थित यह सैंक्चुरी गंगटोक से 137 किलोमीटर दूर है। 43 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैली इस सैंक्चुरी के बीच से होकर युमथांग नदी बहती है। इस नदी के दोनों किनारों पर उगी पहाड़ी वनस्पतियां इसे बेपनाह खूबसूरती देती हैं। इसके किनारों पर मौजूद वनस्पतियों की 40 दुर्लभ प्रजातियां तो अकेले सिक्किम में ही दर्ज की गई हैं, जिनके रंग-बिरंगे फूल हर साल मार्च से मई के दौरान इस घाटी को एक अलग ही रंगत देते दिखते हैं। सिक्किम राज्य में राजकीय वृक्ष के रूप में मान्यता प्राप्त रोडोडेंड्रन नेवियम की इस पूरी घाटी में भरमार है। इसके अलावा प्रिमुला, पोटेंटिला, जेंटियन, लार्च, जुनिपर, मैपल और लिचेन जैसे दुर्लभ पौधे भी यहां खूब देखे जा सकते हैं। सैंक्चुरी से पहले सीमावर्ती अंतिम गांव लाचुंग है। यहां विचरण के लिए फुनिया या युमथांग में भी डेरा डाला जा सकता है। इस सैंक्चुरी के लिए टूर पैकेज भी आयोजित किए जाते हैं, जो अप्रैल से सितंबर तक चलते रहते हैं।

कंचनजंगा नेशनल पार्क
 सिक्किम 
अगर आप वन्य प्राणियों के बारे में जानना और उन्हें देखना पसंद करते हैं तो कंचनजंगा नेशनल पार्क मुफीद जगह है। सिक्किम के उत्तरी जिले में स्थित यह वन्य जीव अभ्यारण्य 850 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है और यहां तमाम दुर्लभ प्रजातियों के जंतु स्वच्छंद विचरते हैं। इसके क्षेत्र में कई ग्लेशियर भी हैं, जिनमें जेमू ग्लेशियर सबसे लंबा और नयनाभिराम है। कंचनजंगा का शाब्दिक अर्थ है ‘देवताओं का ऐसा आवास जिसमें पांच घर हों’। कंचनजंगा के पांच घरों के रूप में नरशिंग, पंदिम, सिम्वो, कब्रू और सिनिओल्चू पर्वतशिखरों की गिनती की जाती है। इनमें पंदिम, नरशिंग और सिनिओल्चू इस पार्क की सीमा में ही हैं। दुनिया भर से प्रकृतिप्रेमी पर्यटक तो इन पर्वतशिखरों को ही देखने के लिए इस अभ्यारण्य में आते हैं। चिडि़यों की यहां कुल 550 प्रजातियां पाई जाती हैं।

इनमें ब्लड फेजेंट, सेटायर ट्रैगोपन, ऑस्प्रे, हिमालयन ग्रिफॉन, लैमर्जियर, बर्फीला कबूतर, इंपेयन फेजेंट, सन ब‌र्ड्स और गरुड़ शामिल हैं। जंगली पशुओं में यहां क्लाउडेड लेपर्ड, हिमालय क्षेत्र में पाया जाने वाला काला भालू, लाल पांडा, ब्लू शीप, कस्तूरी हिरन, हिमालयन थार, लेसर बिल्लियां, तिब्बती भेडि़ये और भेड़ आदि भारी मात्रा में देखे जा सकते हैं। ट्रेकिंग और पर्वतारोहण के अभियान भी यहां समय-समय पर चलाए जाते हैं। सिक्किम में विभिन्न पर्वतीय स्थलों के लिए ट्रेकिंग के कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इसके लिए जरूरी चीजें आपको सिक्किम के पर्यटन विभाग या मान्यता प्राप्त एजेंटों से किराये पर भी मिल सकते हैं। ट्रेकिंग आयोजनों में भाग लेने के लिए जरूरी है कि आप शारीरिक रूप से चुस्त-दुरुस्त हों। यहां समुद्रतल से 6,000 फुट से लेकर 14,000 तक की ऊंचाई वाले स्थलों के लिए ट्रेकिंग के आयोजन किए जाते हैं।

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