ब्रजभूमि का हृदय माना जाने वाला शहर मथुरा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थल होने के कारण तो महत्वपूर्ण है ही, यह व्यापार और कला का भी प्रमुख केंद्र रहा है। एक समय में यह बौद्ध धर्म के प्रचार का एक बड़ा केंद्र बना था। दिल्ली से 145 किमी और आगरा 58 किमी की दूरी पर मौजूद यह शहर हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त सप्तपुरियों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण रोज यहां हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं। सैकड़ों दिव्य व भव्य मंदिरों को अपनी परिधि में समेटे इस शहर के कण-कण में अध्यात्म की धारा बहती हुई सी प्रतीत होती है।
कटरा केशवदेवजी का भव्य मंदिर श्रीकृष्ण का जन्मस्थल माना जाता है। गीता मंदिर एक और भव्य मंदिर है, जिसकी दीवारों पर संपूर्ण गीता उत्कीर्ण है। यह मंदिर सन 1815 में ग्वालियर के सेठ गोकुलदास पारिख ने बनवाया था।
यमुना के बगैर मथुरा की पहचान अधूरी
यमुना के बगैर मथुरा की पहचान अधूरी है। कृष्ण के जन्म से लेकर शहर के इतिहास और भूगोल तक मथुरा की संस्कृति में हर स्तर पर यमुना नदी का विशेष महत्व है। यहां यदि एक ओर से दूसरी ओर देखें तो यमुना के किनारे कई घाट दिखेंगे। कुछ विशेष पर्वो पर यहां स्नान करने की प्रथा है। यहां के कुल 25 घाटों में विश्राम घाट, गणेश घाट, कृष्ण गंगा घाट, सोमतीर्थ घाट, घंटाघरण घाट आदि प्रमुख हैं। विश्राम घाट को सबसे महत्वपूर्ण घाट माना जाता है, क्योंकि कंस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण ने यहीं आकर विश्राम किया था। मथुरा की परिक्रमा भी यहीं से शुरू की जाती है और यहीं संपन्न भी की जाती है।
चैतन्य महाप्रभु की बैठक
विश्राम घाट के पास ही मुकुट मंदिर, राधा दामोदर मंदिर, नीलकंठेश्वर मंदिर, मुरली मनोहर मंदिर, यमुनाकृष्ण मंदिर, लंगलि हनुमान मंदिर व नरसिंह मंदिर जैसे कई प्रमुख मंदिर भी हैं। यहां वैष्णव संप्रदाय के चैतन्य महाप्रभु की बैठक भी है। विश्राम घाट पर संध्या समय यमुनाजी की विशेष आरती होती है। इसमें शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां आरती के बाद हजारों दिये एक साथ यमुना में प्रवाहित किए जाते हैं। इस अलौकिक दृश्य को लोग बहुत शुभ मानते हैं।
मथुरा की यात्रा तब तक पूरी नहीं मानी जाती जब तक यहां के कुंडों के दर्शन न कर लिए जाएं। प्राचीनकाल में यहां कुल 159 कुंड थे, पर अब चार कुंड ही रह गए हैं- शिव ताल, पोतड़ाकुंड, बालभद्र व सरस्वती कुंड। यहां भगवान शिव के भी कई मंदिर हैं। इनमें भूतेश्वर महादेव मंदिर, गोकर्णेश्वर मंदिर, रंगेश्वर महादेव मंदिर और पीपलेश्वर मंदिर प्रमुख हैं।
मथुरा का इतिहास भी बहुत रोचक रहा है। तीसरी सदी ई. पू. से चौथी सदी ईसवी तक यहां गुप्तवंश का शासन रहा है। इसी दौरान यहां व्यापार व कला का भी खूब विस्तार और विकास हुआ।
राधामय यह जगत
मथुरा से 15 किमी की दूरी पर स्थित वृंदावन वह जगह है जहां श्रीकृष्ण ने अपना बचपन बिताया। उनकी बाललीलाओं की भीनी सी तरल अनुभूति आज भी यहां के मंदिरों और गलियों में की जा सकती है। वृंदावन मंदिरों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। श्रीगोविंददेवजी का मंदिर जयपुर के महाराज मानसिंह ने बनवाया था। लाल पत्थरों से बना यह मंदिर पहले सात मंजिल का था पर अब चार मंजिल ही रह गया है। स्थापत्य की दक्षिण भारतीय शैली का एक बढि़या उदाहरण रंगजी का मंदिर खास तौर से दर्शनीय है। इस मंदिर का भव्य शिखर, विशाल आंगन, सोने का 6 फुट ऊंचा खंभा और बड़ी-बड़ी मूर्तियां इसकी विशेषताएं हैं। चैत्र मास में रथ का मेला, श्रावण में हिंडोले, रक्षाबंधन पर गज-ग्राह का मेला, भादों में जन्माष्टमी उत्सव, लट्ठे का मेला तथा पोश में बैकुंठ उत्सव आदि रंगजी मंदिर पर देखने योग्य अवसर हैं।
यहीं एक कांच का मंदिर भी है। इसमें सैकड़ों देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों व संतों की दर्शनीय प्रतिमाएं हैं। राधा गोपालजी का मंदिर, राधारमण जी का मंदिर, गोपेश्वर मंदिर और युगल किशोर मंदिर भी दर्शनीय हैं।
टेढ़े-मेढ़े खंभों वाला मंदिर
यमुना तट पर बने शाह बिहारीजी के मंदिर को टेढ़े-मेढ़े खंभों वाला मंदिर भी कहते हैं। वास्तव में इसका नाम ललितकुंज है। यहां बसंत पंचमी पर मेला लगता है। सवामन शालिग्राम मंदिर, मदनमोहनजी का मंदिर, बांके बिहारीजी मंदिर, श्रीपागल बाबा मंदिर, राधा बल्लभजी मंदिर, जयपुर वाला मंदिर, मानसरोवर और अक्रूर मंदिर आदि भी यहां दर्शनीय हैं।
वृंदावन ही वह जगह है जहां श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ रास रचाई थी और यहीं उनका प्रेम आध्यात्मिक परिणति को प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण के साथ कई त्यौहार भी जुड़े हैं। इनमें वसंत पंचमी व जन्माष्टमी का खास महत्व है। जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मथुरा में जन्माष्टमी मनाने के अगले दिन वृंदावन में जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस अवसर पर मंदिरों को फूलों और रंगों से सजाते हैं। भजन कीर्तन होता है। रात को 12 बजे जन्म समय पर खीरे को काटकर भगवान का जन्म माना जाता है। फिर आरती की जाती है व छप्पनभोग लगाया जाता है। यहां जन्माष्टमी के अवसर पर लोग देश-विदेश से शामिल होने आते हैं।
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