सैलानियों के ख्वाब सच होने का मौसम आ गया है। देश भर में लाखों लोग पर्यटन पर निकल चुके हैं। पहाडी गांवों, कस्बों व शहरों में भीड बढ रही है। बरसों से उनके मन में यह देखने की तमन्ना है कि बर्फ कैसी होती है, कैसे गिरती है आसमान से और तिस कर कैसे फिसलते हैं। हजारों किलोमीटर दूर से, हर सर्दी में मनाली, नारकंडा, शिमला, श्रीनगर, कुफरी में लोगों के हुजूम इकट्ठा हो जाते हैं जो कई-कई दिन इंतजार करते हैं रूईनुमा फाहों को आसमान से उतरते हुए देखने का, उन्हें हाथ से छूने का, एक-दूसरे पर बर्फ के गोले दागने का, बर्फ पर फिसलने का, गिरने-गिराने का। कुदरत मेहरबान हो जाए तो लाखों लोगों के सपने सच हो जाते हैं और पर्यटकों का जीवन सफल हो जाता है। हनीमून पर उमडे जोडों का दिल गार्डन-गार्डन हो उठता है तो दुकानदारों की आंखों में नोटों की चमक दमकने लगती है।
उत्कंठा की चरम सीमा पर होता है पर्यटक-मन, विशेषकर बाल पर्यटकों का जिन्होंने बर्फ का परिचय किताबों, चित्रों या फिल्मों से पाया है। बर्फ से एकाकार होने का असली मजा तो खुले ग्रामीण अंचल में है जहां पहाड, खेत, वृक्ष, घर, पत्थर, घास कहिए हर चीज पर बर्फ यूं बिछ जाती है मानो पिंजी हुई रूई के फाहे करीने से सजा दिए हों। समतल जगह पर लगता है जैसे सफेद कालीन बिछा दिए हों। बर्फ गिरते देखना प्रकृति का मूक संगीत सुनने व देखने जैसा ही है, कोई शोर नहीं मगर गति कभी धीमी कभी तेज। पहली बार यह दिव्य नजारा देखने वाला सम्मोहित हुए बिना नहीं रह सकता। बूढे, गृहणियां, युवा, बच्चे यहां तक कि भेड-बकरियां तक आंगन में खडे हैं। अनुभवियों को आभास हो गया है, बर्फ गिर सकती है। मौसम ने बर्फ के स्वागत के लिए ठंड की आगोश तैयार कर ली है। पहाडवासी मन ही मन पारंपरिक स्वागत गीत गा रहे हैं।
प्रकृति का संकेत प्रेषित होते ही आसमान से जैसे सफेद परिंदे हौले-हौले उडकर आते हैं, उनका मन स्पर्श एवं आह्लादित कर, उनके सिर के बाल, कंधे व हाथों पर टिकते गिरते हुए अपनी जादुई उपस्थिति के स्पंदन से आनंदित कर देते हैं। बचपन को एक खेल मिल जाता है। कोई गुडिया या गुड्डा बनाने लगता है तो कोई जोकर या नेता। युवाओं व नवविवाहितों के लिए बर्फ का सामिप्य रोमांस व मस्ती पैदा करता है। बर्फ गिरते इठलाते फाहों के बीच नृत्य करना सभी को अच्छा लगता है। नवविवाहित जब अपने जीवन-साथी के आगोश में आते हैं तो उनका बर्फ पर एक साथ मादक अंदाज में चलना, गिरते हुए एक दूसरे को संभालना, स्लैज (बर्फ पर घिसटने वाली गाडी) पर बैठकर या स्नो स्कूटर पर फिसलना उनके प्यार की मस्ती को उनके रोम-रोम में भर देता है। कैमरा यहां बेहद सक्रिय महत्वपूर्ण दोस्त की भूमिका निभाता है। बर्फ अपना आंचल बिछाती है तो बर्फ खेल पे्रमी अपना साजो-सामान इकट्ठा कर गर्म पोशाकें, रंगीन टोपियां ओढ सोलंग नाला, कुफरी, नरकंडा, औली, गुलमर्ग जैसे प्रसिद्ध स्कीइंग प्वांइट्स की तरफ रुख करते हैं। यहां वे पर्यटकों को भी स्कीइंग सीखने का अनुभव देते हैं स्वयं भी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों का हिस्सा बनते हैं। लोक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर बर्फ का गिरना शुभ माना जाता है।
ग्लोबल तापमान बढता जा रहा है, इसलिए सर्दियों के मौसम में अब वो ठिठुरन नही रही तभी तो उतनी बर्फ नहीं पडती। पर्यावरण समृद्ध करने कि लिए ज्यादा पेड पौधे लगें ऐसा प्रयास हम कर सकें या नहीं मगर जीवन की भागदौड से प्रकृति की गोद में बर्फीले खेतों के आंगन में जिंदगी की उन्मुक्त खुशियों का आनंद उत्सव तो मना ही सकते हैं। बर्फ बुला रही है।
गुलमर्ग का गंडोला
जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से महज 51 किलोमीटर दूर गुलमर्ग तेजी से देश की स्कीइंग राजधानी की ख्याति अर्जित कर रहा है। इसे सबसे रोमांटिक जगहों में भी शुमार किया जाता है। गुलमर्ग का गंडोला एशिया में सबसे ऊंचा व लंबा केबल-कार प्रोजेक्ट है। यह गंडोला हर घंटे छह सौ लोगों को 12293 फुट ऊंचे कोंगडूरी पर्वत पर ले जाता है जो अफरवात चोटी के ठीक बगल में है। राज्य सरकार व फ्रेंच कंपनी पोमगेलस्की के इस साझा उपक्रम का पहला चरण 1998 और दूसरा 2005 में पूरा किया गया। दूसरे चरण में 36 केबिन और 13 टॉवर शामिल किए गए। उस ऊंचाई पर जाकर नीचे कटोरीनुमा घाटी और बर्फ से लकदक पहाडों का नजारा अद्भुत होता है। दिसंबर के मध्य से लेकर मई की शुरुआत तक यहां स्कीइंग का सीजन रहता है। यूं तो श्रीनगर से दिनभर में गुलमर्ग जाकर आया जा सकता है, लेकिन गुलमर्ग में ठहरने का मजा कुछ और ही है। वहां हर बजट के कुल मिलाकर 40 से ज्यादा होटल हैं।
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