पांडिचेरी पहले फ्रांसीसी शासन के अधीन था। सितंबर 2006 से इसका नाम पुडुचेरी कर दिया गया है जिसका तमिल भाषा में अर्थ है नया गांव। इसकी सबसे ज्यादा चर्चा लंबे समय तक फ्रांसीसी कॉलोनी के रूप में रहने और महर्षि अरविंद द्वारा स्थापित आश्रम के कारण है। स्थापत्य कला व संस्कृति की दृष्टि से यह एक धनी नगरी है। चेन्नई से ईसीआर राजमार्ग पांडिचेरी तक जाता है।इसे भारत के सबसे खूबसूरत रास्तों में गिना जा सकता है। यह ईस्ट कोस्ट रोड एक्सप्रेस वे समुद्र के समानांतर है।

इस सड़क पर सफर के आनंद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर कारें ऐसे ही दौड़ती हैं मानो वे बर्फ पर स्केटिंग कर रही हों। इस रास्ते से चेन्नई से ढाई-तीन घंटे में पांडिचेरी (दूरी 164 किलोमीटर) पहुंचा जा सकता है। रास्ता केवल बढि़या सड़क और साथ-साथ चलते समुद्र की वजह से ही खूबसूरत नहीं है। रास्ते के पड़ाव भी उतने ही आकर्षक हैं। जैसे कि आप रास्ते में‘चोलामंडलम्‘में ग्रामीण हस्तकला का नमूना देख सकते हैं तो ‘दक्षिणाचित्र‘में दक्षिण भारत की कला संस्कृति, जीवनशैली और स्थापत्य कला के विविध रूपों को देख सकते हैं। यह एक संग्रहालय सरीखा है। रास्ते में मगरमच्छों का बैंक है जहां सैकड़ों मगरमच्छ एक-दूसरे से लिपटे देखे जा सकते हैं।

चूंकि यहां मगरमच्छों का कृत्रिम प्रजनन केंद्र है, इसलिए आप न केवल इन्हें नजदीक से देख सकते हैं बल्कि नवजातों को गोद में भी उठा सकते हैं।ईसीआर पर महाबलीपुरम् के मंदिर भी दर्शनीय हैं जो वास्तु कला की सुंदरता के कारण यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल किए जा चुके हैं। इतनी सारी जगहों को देखते हुए हमने चेन्नई से पांडिचेरी की ढाई घंटे की यात्रा को लगभग 12 घंटे में पूरा किया। मार्ग के दर्शनीय स्थलों का आकर्षण ही ऐसा था।
देश में विदेश का अनुभव

हम शांत व शालीन पांडिचेरी नगर में पहुंचे तो लगा कि विदेश में आ गए हैं। पांडिचेरी देश के अन्य नगरों से अलग सुनियोजित, सुव्यवस्थित और साफ सुथरा नगर है। यहां दिन गरम होते हैं लेकिन शाम व रात खुशनुमा होती हैं। आया सालभर जा सकता है लेकिन ज्यादातर लोग यहां आने के लिए गर्मियां खत्म होने का इंतजार करते हैं। पांडिचेरी पर पुर्तगाल, नीदरलैंड और रोमन शासन भी रहा। वर्ष 1670 में फ्रांसीसी यहां आ गए थे और 1816 में पांडिचेरी पर फ्रांस का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हुआ। फ्रांसीसी शासन में डुप्ले पहला गवर्नर था। आज भी पांडिचेरी में डुप्ले की मूर्ति यहां फ्रांसीसी शासन की याद दिलाती है। हालांकि फ्रांस का असर केवल डुप्ले की प्रतिमा से नहीं बल्कि पांडिचेरी के समूचे रहन-सहन पर नजर आता है। उसकी संरचना ही फ्रांसीसी स्थापत्य कला के आधार पर की गई थी। सड़कें और गलियां समानांतर हंै और सारी गलियां 90 डिग्री के कोण पर मिलती हैं। ऊंची-ऊंची दीवारों वाले भवन फ्रांसीसी इमारतों की विशेषता है।भवनों के सामने खुली जगह नहीं है, दरवाजे सड़क पर खुलते हैं लेकिन भीतर बड़ा और खुला आंगन है जिसके किनारे कमरे बने होते हैं। यहां गलियों के नाम आज भी फ्रांस के महान नागरिकों के नाम पर हैं । जैसे सेंट लुई स्ट्रीट, फैंकोस मार्टिन स्ट्रीट, रोमा रोलाँ स्ट्रीट, विक्टर सिमोनेल स्ट्रीट आदि। पूरा शहर एक नहर द्वारा दो भागों में विभाजित है- फ्रांसीसी या सफेद नगर और भारतीय या काला नगर। भारतीय भवनों में बरामदे सहित चौड़े दरवाजे हैं। दोनों संस्कृतियों की वास्तुकला के संरक्षण का दायित्व ‘इंटैक’ नामक संस्था ने ले रखा है जिसकी स्वीकृति के बिना यहां कोई भवन गिराने या निर्माण करने का कार्य नहीं हो सकता है। भारत 1947 में आजाद हुआ पर पांडिचेरी को 1 नवंबर 1954 को आजादी मिली।

लगभग 300 वर्ष तक फ्रांसीसी शासन के अधीन रहने के कारण यहां तमिल, तेलगू व मलयालम के साथ फ्रांसीसी भाषा न केवल प्रचलन में है बल्कि इसे सरकारी भाषा के रूप में भी मान्यता मिली हुई है। यहां फ्रांसीसी माध्यम के स्कूल हैं साथ ही फ्रांसीसी भाषा सिखाने वाले संस्थान भी। यहां रहने वाले अनेक तमिल फ्रांस के नागरिक हैं जो फ्रांस में नौकरी भी प्राप्त कर सकते हैं। पांडिचेरी में हम सबसे पहले बीच रोड गए जो यहां का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। बीच रोड समुद्र के किनारे है जहां रोज शाम के समय भीड़ देखने लायक होती है। यहां समुद्र का पानी गहरा नीला है जिसकी ऊंची लहरों को तट से टकराते हुए और शोर मचाते हुए देखना खासा सुहावना लगता है। बीच रोड के अंतिम छोर पर गांधी मंडपम् है जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रतिमा है जो नक्काशी वाली छतरी और स्तंभों से घिरी है। गांधी प्रतिमा से कुछ दूर पर एक लाइट हाउस है और फ्रांस के अनजाने सैनिकों की याद में एक स्मारक भी। लाइट हाउस के पीछे ‘आयी मंडपम्’ नाम से एक फ्रांसीसी स्मारक है जो भारती पार्क के केंद्र में है। ‘आयी’ नामक एक उदार हृदय वेश्या ने यहां के लोगों के लिए एक तालाब खुदवाया था जिससे प्रभावित होकर नेपोलियन तृतीय ने इस स्मारक को बनवाया था। स्मारक के पास ही पांडिचेरी विधानसभा भवन है और दूसरी ओर राजभवन जिसमें पांडिचेरी के उप राज्यपाल रहते हैं और जो पहले फ्रेन्च गवर्नर का निवास था। राज निवास के सामने म्यूजियम की इमारत है जिसमें रोमनकाल से लेकर फ्रांसीसी काल तक के शिल्प वस्तुओं का संग्रह है। पांडिचेरी के खूबसूरत चर्च यहां के पर्यटकों के आकर्षण के केंद्र हैं। बीच रोड के बाई तरफ ‘इग्लाइज डी’ चर्च की सुंदर इमारत है। दूसरी प्रसिद्ध चर्च है ‘कोर डी जीसस’ चर्च। यहां ईसा मसीह के जीवन पर आधारित खूबसूरत ग्लास पेंटिंग्स हैं। पांडिचेरी के पुराने शहर के मध्य में 1826 में स्थापित पुराना बॉटानिकल गार्डेन है। इसका मुख्य गेट नक्काशीदार फ्रांसीसी शैली में है। यह दक्षिणी भारत के सबसे सुंदर उद्यानों में से एक है। इसमें लगभग 1500 पौधों की प्रजातियां हैं। गार्डेन में संगीतमय फव्वारा शाम को दर्शकों का मनोरंजन करता है।
समरसतापूर्ण जीवन
पांडिचेरी की यात्रा अधूरी ही रह जाएगी यदि भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी और आध्यात्मिक साधक महर्षि अरविंद के आश्रम का हम दर्शन न करें। शहर के पूर्वी दिशा में यह आश्रम है। आश्रम आसपास के अनेक भवनों को लेकर स्थापित है। 1926 में इसकी स्थापना योगी अरविंद ने की थी और इसका विस्तार फ्रांसीसी महिला मीरा अल्फासा ने किया जो बाद में मदर कहलाई गई। यह आधुनिक शहरी क्षेत्र में समरसतापूर्ण जीवन का एक जीवंत केंद्र है, दुनिया के विभिन्न देशों से आए हुए लोगों का घर है जो यहां आकर शांति प्राप्त करते हैं। आश्रम के मुख्य भवन में महर्षि अरविंद और मदर की श्वेत संगमरमर की सुगंधित पुष्पों से सुसज्जित समाधि है। दोनों ने इसी भवन में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय बिताया। वर्ष 1968 में अरविंद के मानव एकता के आदर्श को मूर्त रूप देने के लिए मदर ने ऑरोविल नाम से एक अंतरराष्ट्रीय नगर की स्थापना की। यह पांडिचेरी से 10 किलोमीटर की दूरी पर है। आश्रम से ऑरोविल के लिए बस चलती है। यह स्थान किसी एक देश या एक संप्रदाय का नहीं है बल्कि एक केंद्र है शांति और समरसता की स्थापना का। यहां देश-विदेश से लोग आते हैं और विविध गतिविधियों में भाग लेकर अपना मानसिक-आध्यात्मिक विकास करते हैं। यहां सेंटर ऑफ एजुकेशन में लगभग 400 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। यहां लगभग 15,000 लोगों को रोजगार मिला हुआ है जो शिक्षा, चिकित्सा, कला, विज्ञान, हस्तशिल्प, ग्रामीण विकास, लघु उद्योग, अध्यात्म आदि विविध क्षेत्रों में काम करते हैं। इस अंतरराष्ट्रीय नगर में भारत निवास भारत का राष्ट्रीय मंडप है। नव निर्मित सुनहला, चमकता हुआ, विशाल गुंबद के आकार का भवन ‘मातृ मंदिर’ है जो ऑरोविल की आत्मा है। यह अभी निर्माणाधीन है।
मौज -मज़ा
यहां ऑरो बीच शांत, सुंदर और शहरी कोलाहल से दूर है। सागर का अनंत स्वरूप मानव को रोमांचित करता है और सूर्योदय विशेष रूप से दर्शनीय है। पांडिचेरी से केवल 8 किलोमीटर की दूरी पर चुन्नांबर में बैक वाटर है। यहां पर जल बिल्कुल स्वच्छ है, इसलिए नहाने के लिए यह सबसे अच्छी जगह है। कहा जाता है कि यहां तट पर बालू प्राचीन कालीन है। बे वाटर में बोटिंग की भी व्यवस्था है। यह पिकनिक मनाने के लिए भी बहुत अच्छी जगह है। पांडिचेरी शहर को आधुनिकता का स्पर्श मिल चुका है। चमकते-दमकते मॉल, दुकानें, साइबर कैफे और साथ ही सैकड़ों होटल और रेस्तरां बनते जा रहे हैं। आम लोगों के लिए सस्ते भी हैं और खास लोगों के लिए महंगे होटल भी। खान-पान के मामले में भी तमाम तरह की विविधता यहां मिल जाएगी। समुद्र किनारे स्थानीय भोजन करें या शहर के किसी रेस्तरां में खालिस फ्रांसीसी, आनंद दोनों में ही पूरा मिलेगा। शहर के नवीन दर्शनीय स्थलों में पाम हाउस भी उल्लेखनीय है जहां एक कृत्रिम तालाब और पार्क है। पार्क में वृक्ष पर बने हुए घर हैं, इन पर चढ़ने के लिए रस्सियों से बनी सीढ़ी है जिससे घर के सामने की छोटी बालकनी तक पहुंचा जा सकता है। तो चलिए सागर तट का मजा लेने के लिए और साथ में विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों का आनंद लेने के लिए पांडिचेरी जाने की योजना बना ही लीजिए।
कैसे पहुंचे
यहां पहुंचने का सबसे आसान रास्ता तो ट्रेन या हवाई जहाज से चेन्नई पहुंचकर वहां से बस या टैक्सी से पांडिचेरी पहुंचने का है। वैसे ट्रेन से 40 किलोमीटर दूर विल्लुपुरम तक भी आया जा सकता है। पांडिचेरी छोटी रेल लाइन से विल्लुपुरम और चेन्नई से भी जुड़ा है लेकिन यह रेल सेवा न तो लोकप्रिय है और न ही नियमित। विल्लुपुरम और पांडिचेरी के बीच नियमित बस सेवा है। विल्लुपुरम बड़ी रेल लाइन से सभी बड़े स्टेशनों से जुड़ा है। वैसे सड़क मार्ग से पांडिचेरी अच्छी तरह से सभी पड़ोसी राज्यों से जुड़ा है। आप बंगलुरू या मदुरै होते हुए भी पांडिचेरी आ सकते हैं।

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