औली में उत्सव है ठंड
गढ़वाल के सीमांत जिले चमोली के जोशीमठ विकासखंड स्थित प्रसिद्ध हिमक्रीड़ा स्थल औली जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर है वहीं यहां की बर्फीली ढलानें स्की प्रेमियों की पहली पसंद बन चुकी हैं। इस क्षेत्र की पौराणिक महत्ता किसी से छिपी नहीं है। देशी-विदेशी पर्यटकों को भी यह क्षेत्र हमेशा लुभाता रहा है। नेशनल ओपन चैंपियनशिप व राष्ट्रीय शीतकालीन खेल आयोजन के बाद औली अंतरराष्ट्रीय पर्यटक मानचित्र पर भी चमकने लगा है। जोशीमठ से गोरसों तक भारत के सबसे बड़े रोपवे यानी रज्जुमार्ग भी यहां की खास विशेषता हैं। इससे औली तक पहुंचना बेहद आसान हो गया है।
समुद्र तल से 8 हजार फीट से 13 हजार फीट तक की ऊंचाई पर फैले औली को कभी संजीवनी शिखर के नाम से जाना जाता था। पौराणिक गाथाओं के अनुसार हनुमान जी जब संजीवनी लेने हिमालय की इस वीरान पहाड़ी में आए तो उन्हें संजीवनी शिखर औली से ही द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी का खजाना दिखा था। कालांतर में यहां हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की गई। संजीवनी शिखर से औली तक का सफर तय करने वाले इस क्षेत्र की प्राकृतिक खूबसूरती का बखान करना शब्दों में संभव नहीं होगा। जिस तरह यहां अलग-अलग मौसम में प्रकृति अपना अलग-अलग रूप दिखाती है उससे यह तो कहा ही जा सकता है कि यहां के नजारे बेनजीर हैं। बरसात में हरियाली ओढ़े औली एक खूबसूरत नवयौवना के रूप में दिखती है, तो शीतकाल में बर्फ की श्र्वेत चादर ओढ़े औली की सादगी भी भव्य रूप में प्रकट होती है।
स्कीप्रेमियों का प्रशिक्षण
औली (संजीवनी शिखर) में क्षेत्र के विभिन्न गांवों की छानियां हुआ करती थीं, जहां गांवों के लोग अपने मवेशियों सहित बसंत ऋतु में प्रवास करते थे। हालांकि आज भी सलूड़-डुंग्रा क्षेत्र के ग्रामीण यहां छानियों में रहने आते हैं। औली को स्कीइंग क्षेत्र के रूप में विकसित कर इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाने की सोच को लेकर आज तो कई मत हैं। बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में पर्वतीय विकास मंत्री रहे बद्री-केदार के तत्कालीन विधायक स्व.नरेंद्र सिंह भंडारी ने इस अनजाने क्षेत्र को विकसित करने की पहल की थी। रज्जुमार्ग व स्कीइंग प्रशिक्षण का शिलान्यास 20 जुलाई 1983 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इन्दिरा गांधी ने किया था। सन् 1984 से ही गढ़वाल मंडल विकास निगम ने यहां स्कीप्रेमियों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। वर्ष 1986 से औली में स्कीइंग प्रतियोगिता शुरू हुई तो इस क्षेत्र के विकास को नई गति मिली। वर्ष 1992 तक तो दो वर्षो में एक बार विंटर गेम फेडरेशन ऑफ इंडिया के तत्वावधान में ओपन चैंपियनशिप आयोजित होती रही, लेकिन 1992 के बाद प्रतिवर्ष यह प्रतियोगिता आयोजित होने लगी। औली में वर्ष 2003 में भारतीय ओलंपिक संघ के तत्वावधान में राष्ट्रीय शीतकालीन खेल के आयोजन होने के बाद तो औली विश्व के पर्यटन तथा शीतकालीन खेल मानचित्र पर अपना प्रमुख स्थान बनाने में कामयाब रही।
सबसे उपयुक्त स्की ढलान
राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कीइंग प्रतियोगिता आयोजित करने के लिए औली के समुचित विकास की जो सोच बनाई गई थी, धीरे-धीरे वह विकसित होती गई। औली को ख्याति दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले भारत के सबसे बड़े रज्जुमार्ग का निर्माण 1993 में पूरा हुआ और इसका उद्घाटन भी 26 फरवरी 1994 हुआ। दस टॉवरों वाले 4.1 किमी. लंबे तथा 50 यात्रियों को एक साथ जिक-बैक सिस्टम से ले जाने वाले इस रोपवे को दो वर्ष पूर्व तक एशिया का सबसे बड़ा रोपवे होने का गौरव भी हासिल था। औली में स्कीइंग प्रतियोगिताओं के लिए रोपवे व्यवस्था होने से स्कीप्रेमी सुकून महसूस करते हैं। पर्यटकों एवं स्कीयरों को आठ सौ मीटर की चेयरकार का सफर भी तय कराया जाता है। यहां 500 मीटर स्की-लिफ्ट भी लगाई गई है, जो स्कीयरों को ढलान से ऊपर लाने का कार्य करती है।
औली की बर्फीली ढलान की लम्बाई पांच किमी से अधिक है। यह स्कीयरों के लिए 25 वर्ग किमी पर फैला हुआ ढलान है। इसके अलावा औली में 60 गुणा 40 मीटर लंबे आइस-स्केटिंग रिंग का निर्माण भी अंतिम चरण में है, जिसमें आईस-हॉकी, फिगर स्केटिंग आदि शीतकालीन खेल खेले जाएंगे। स्कीइंग विशेषज्ञ बताते हैं कि औली का उत्तरमुखी बर्फीला ढलान दुनिया भर में स्कीइंग के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। साथ ही यहां जमी बर्फ की मोटी परतों से हमेशा स्कीयरों को लगाव रहा है। हालांकि उत्तरांचल के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी ने औली को और विकसित करने के साथ गोरसों टॉप तक रोपवे विस्तार की घोषणा की थी।
अगर यह सपना साकार होता है तो फिर इसके बर्फीले ढलानों में अप्रैल अंतिम सप्ताह तक भी स्कीइंग हो सकती है। औली में लगा रोपवे यूरोप के आस्टि्रया एवं फ्रांस से आयातित है तथा अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर खरा उतरता है। इसके अलावा औली में दो स्नोवीटर भी जर्मनी से आयातित किए गए हैं। हालांकि जिस तेजी से औली का विकास हो रहा है उससे पर्यटकों, स्की प्रेमियों को समुचित सुविधाएं तो मिल रही हैं लेकिन जिस प्रकार छानियों से अब कंकरीट के जंगल में औली तब्दील हो रहा है उससे लोगों की चिन्ताएं इसलिए भी बढ़ रही हैं कि कहीं धीरे-धीरे हो रहे पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकीय असंतुलन से आने वाले समय में औली में बर्फ देखने की वस्तु न बन जाए।
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